सुब्रमण्यम इसे संयोग से अधिक बहुत कुछ मानते हैं, क्योंकि वह उस समय 'इन द नेम ऑफ गॉड' नामक किताब लिख रहे थे, जो तिरुवनंतपुरम में अनंत पद्मनाभ स्वामी मंदिर पर आधारित थी। उस समय उन्हें हार्पर कॉलिंस प्रकाशक से फोन आ रहे थे, जिनके प्रकाशन की ओर से हूबहू इसी नाम से प्रकाशन हो रहा था। उन्होंने कहा कि जहां तक मुझे लगता है, यह दैविक हस्तक्षेप था और मुझे पता था कि इस उपन्यास को लिखा जाना है।
आईआईएम-बेंगलुरू के पूर्व छात्र सुब्रमण्यम ने बताया, "उस समय आरबीआई गवर्नर द्वारा नोटबंदी की सराहना नहीं किए जाने को लेकर काफी हो-हल्ला मचा हुआ था। इस विचार ने मुझे आरबीआई गवर्नर को उपन्यास का नायक बनाए जाने पर विवश किया और फिर एक के बाद एक चीजें होती चली गईं।
आरबीआई गवर्नर और नोटबंदी के बाद प्रधानमंत्री के भाषण पर भी मेरा ध्यान गया, जहां उन्होंने आतंकवाद और जाली मुद्रा के बारे में बात की थी। उन्होंने कालेधन और मनी लांड्रिंग के बारे में बात की थी।
उन्होंने कहा, "आभूषण कारोबार के जरिए मनी लांड्रिंग को लेकर बवाल मचा था और उसके बाद अचानक इस थ्रिलर में बहुत कुछ जुड़ गया। इस तरह यह बन गया। कई सारे प्लॉट से कहानी को रफ्तार मिलती चली गई, बेहतरीन थ्रिलर के साथ एक के बाद एक कहानी में प्लॉट से यह रोचक है और इस तरह 'डोंट टेल द गवर्नर' तैयार हुई।"
सुब्रमण्यम ने कहा कि उन्होंने वास्तविक घटनाक्रमों को खास तवज्जो दी है। वह कहते हैं, "आरबीआई-सरकार के बीच का विवाद ही इसका विषय है, जो पूरी किताब में जारी रहता है। यह सिर्फ संयोग है कि दोनों ने वास्तविक जीवन में भी क्लैश पर विचार किया, जिस समय किताब जारी हुई। मेरी इसमें कोई भूमिका नहीं है।"
लेकिन ऐसा पहली बार नहीं है कि इस किताब की सामग्री की वास्तविक जीवन के घटनाक्रमों में समानता है। उदाहरण के लिए 'इन द नेम ऑफ गॉड' में एक किरदार का नाम नीरव चोकसी है, जो धोखाधड़ी करता है।
उन्होंने कहा, "कुछ लोग असहज हो गए क्योंकि यह किताब पीएनबी घोटाले में नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के अपराधी होने से लगभग छह महीने पहले लांच हुई थी। मुझे लगता है कि ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि एक लेखक के रूप में आप आमतौर पर सीमाओं से परे हटकर सोचते हैं।
लोगों को संदेह से देखना आपकी प्रकृति बन जाती है। मुझे लगता है कि अपराधी दिन-प्रतिदिन रचनात्मक होते जा रहे हैं और लेखक रचनात्मक इंसान हैं।"
सुब्रमण्यम ने जोर देकर कहा कि उनका उपन्यास 'फिक्शन' है। उन्होंने पाठकों से इसका कुछ और मायने लगाने के बजाय इसका लुत्फ उठाने को कहा है। वह कहते हैं कि कोई भी घटनाक्रम जो हैरान कर देने वाला है और जो लोगों की नजर में रहता है, वह मुद्दा थ्रिलर के लिए बेहतरीन है और नोटबंदी ऐसा ही एक मुद्दा है।
वह पूछते हैं, "जब आठ नवंबर 2016 को नोटबंदी हुई थी तो किसी ने इसकी कल्पना नहीं की थी। वह किसी थ्रिलर कहानी में रोमांचक मोड़ की तरह था, जिसने सभी को चौंका दिया। यह ट्विस्ट किताब लिखे जाने के बाद भी उनके साथ लंबे समय तक रहा। नोटबंदी की गूंज को दो साल बीतने के बाद भी सुनी जा सकती है।"